भारतीय समाज में संस्कार पद्धति कमजोर होने से भारतीय संविधान की सामाजिक न्याय की मूल भावना आहत हुई है। इसको सुदृढ़ बनाने के लिए प्रत्येक भारतीय को अपने मूल अधिकारों के साथ कर्त्तव्यों का पालन करना आवश्यक है। स्वतंत्रता, सामानता और बंन्धुत्व से ही सामाजिक न्याय स्थापित किया जा सकता है। यह विचार संस्कार भारती प्रचार विभाग एवं सरोजिनी नायडू कन्या महाविद्यालय के संयुक्त तत्वावधान में “भारतीय संविधान और सामाजिक न्याय” विषय आयोजित संगोष्ठी में वक्ताओं द्वारा व्यक्त किये गये है। संगोष्ठी सामाजिक न्याय एवं दिव्यांगजन कल्याण मंत्री नारायण सिंह कुशवाह के मुख्य आतिथ्य, अध्यक्ष मध्य भारत प्रांत संस्कार भारती राजीव वर्मा की अध्यक्षता में सम्पन्न हुई। मुख्य वक्ता संघ संचालक (पूर्व न्यायाधीश) मध्य प्रांत अशोक पाण्डे थे।
मंत्री कुशवाह ने कहा कि भारतीय संविधान केबल शासकीय दस्तावेज नहीं है, वह भारत की आत्मा है। हमारा संविधान भारत के प्रत्येक नागरिक को धर्म, जाति, भाषा क्षेत्र और लिंग के आधार पर समान अधिकार प्रदान करता है। संविधान के मौलिक अधिकारों अनुच्छेद 14 से 18 तक देश के नागरिकों को समानता का अधिकार प्रदान करता है। अनच्छेद 21 प्रत्येक नागरिक को गरिमापूर्ण ढ़ंग से जीवन जीने का अधिकार प्रदान करता है। संवैधानिक अधिकारों की जानकारी नहीं होने से भी व्यक्ति सामाजिक न्याय प्राप्त नहीं कर पाता है। उन्होंने कहा कि समृद्ध और सशक्त भारत के निर्माण में सामाजिक समरता और व्यसन मुक्त समाज का निर्माण भी जरूरी है।
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