लोकसभा चुनाव 2024 (lok sabha election 2024) के लिए बहुजन समाज पार्टी (Bahujan samaj party) ने मध्य प्रदेश में 7 प्रत्याशियों को उतार दिया है। पार्टी ने विंध्य के कद्दावर नेता को भी टिकट दिया है। इसके साथ ही पार्टी ने कमलनाथ के बेटे नकुल नाथ (Nakul Nath, son of Kamal Nath) के खिलाफ भी प्रत्याशी का ऐलान कर दिया है. इससे पहले बीजेपी ने सभी 29 सीटों और कांग्रेस ने 10 सीटों पर प्रत्याशियों का ऐलान कर दिया था।
बहुजन समाज पार्टी की पहली सूची में मैहर से पूर्व विधायक नारायण त्रिपाठी (Former MLA Narayan Tripathi) का भी नाम है। इस सूची में सात प्रत्याशियों के नाम हैं। इसमें खजुराहो से कमलेश पटेल, सतना से नारायण त्रिपाठी, सीधी से पूजनराम साकेत, मंडला से इंदर सिंह उईके, छिंदवाड़ा से उमाकांत बंदेवार, मंदसौर से कन्हैयालाल मालवीय, बैतूल से अशोक भलावी के नाम सामने आए हैं।
सागरः सागर जिले में मकरोनिया बुजुर्ग तहसील के अपर तहसीलदार दुर्गेश तिवारी को नियम विरुद्ध नामांतरण आदेश पारित करने पर निलंबित किया गया है।
कमिश्नर सागर संभाग वीरेंद्र सिंह रावत द्वारा इस संबंध में जारी आदेश के अनुसार अपर तहसीलदार तिवारी द्वारा राजस्व प्रकरण में वसीयतनामा, मृत्यु प्रमाण पत्र और अन्य दस्तावेजों का गहन परीक्षण किए बिना नियम विरुद्ध नामांतरण आदेश पारित कर दिया जो पीठासीन अधिकारी के पदीय दायित्व के प्रति गंभीर लापरवाही है।
कमिश्नर वीरेंद्र सिंह रावत ने इस गंभीर लापरवाही के लिए दुर्गेश तिवारी अपर तहसीलदार को तत्काल प्रभाव से निलंबित कर दिया है। निलंबन अवधि में तिवारी का मुख्यालय कलेक्टर कार्यालय जिला सागर निर्धारित किया गया है। निलंबन अवधि में तिवारी को नियमानुसार जीवन निर्वाह भत्ते की पात्रता होगी।
नवापारा। केंद्र सरकार की महत्वकांक्षी योजना स्वच्छ भारत मिशन के तहत हर घर शौचालय का निर्माण कराने के लिए शासन द्वारा राशि स्वीकृत की गई थी। धरमजयगढ़ ब्लॉक में शौचालय निर्माण के नाम पर खूब गोलमाल होने की खबर हमेशा सुर्खियां बटोरती रहीं। हर दो-चार दिन बाद शौचालयं में हुई भ्रष्टाचार की खबर समाचार पत्रों की सुर्खियां बनती रही लेकिन इसके बाद भी शासन-प्रशासन इस घोटाले की जांच नहीं करवाई, जिससे घोटाले बाज सरपंच-सचिव व अधिकारी कर्मचारियों के हौसले बुलंद होते रहे। मामला ग्राम पंचायत चन्द्रशेखरपुर का है। इस पंचायत में शासन से 340 शौचालय बनाने की स्वीकृति मिली थी और शौचालय बनने का जिम्मा ग्राम पंचायत को दिया गया था। शासन के नियम अनुसार एक शौचालय के लिए 12 हजार रुपए शासन ने दिया।
यह भी था कि अगर कोई हितग्राही अपना शौचालय स्वयं बनवाता है तो प्रोत्साहन राशि के रूप में 12 हजार रुपए दिया जाएगा। ऐसा करने से ग्रामीण अपने शौचालय में शासन द्वारा प्रोत्साहन राशि के अलावा और अधिक राशि लगाकर एक अच्छा शौचालय निर्माण करवा सकते थे। क्योंकि पंचायत द्वारा बनवाया जा रहा शौचालय उपयोग करने लायक नहीं बना था। ग्राम पंचायत द्वारा निर्माण करवाए जा रहे शौचालय को देख चन्द्रशेखपुर के कई ग्रामीणों ने अपना शौचालय खुद बनाने का निर्णय लिया था।
ग्रामीण ने सोचा था की शासन से प्रोत्साहन राशि तो मिलेगा ही और कुछ रुपए लगाकर एक अच्छा सा शौचालय निर्माण करवा लिया जाए। शौचालय निर्माण हुए होने के बाद भी हितग्राहियों को प्रोत्साहन राशि आज तक नहीं मिली। ग्रामीण कई बार अधिकारियों के ऑफिस के- चक्कर लगा चुके हैं लेकिन शिकायत के बाद भी भ्रष्टाचार करने वाले सरपंच-सचिव पर कोई कार्यवाही नहीं हुई। दो-चार दिन पहले ग्रामीणों ने लिखित में शिकायत करते हुए स्थानीय प्रशासन से मांग की थी। जिसके बाद एक जांच टीम बनकार 6 मार्च को चन्द्रशेखरपुर भेजा गया था लेकिन जांच टीम के सामने भ्रष्टाचार करने वाली सरपंच उपस्थित नहीं हुई
जांच टीम को ग्रामीणों ने बनाया बंधक
बताया जा रहा है कि शौचालय घोटाला की जांच करने गई टीम को कई घंटों तक ग्रामीणों का कोपभाजन का शिकार होना पड़ा। जांच टीम के बुलावे पर सरपंच नहीं आई तो नाराज ग्रामीणों ने जांच टीम के अधिकारियों को यह कहकर रोक रखा कि जब तक शौचालय का प्रोत्साहन राशि हितग्राहियों को नहीं मिल जाता तब तक यहां से कोई नहीं. – जाएगा। ग्रामीणों का आरोप था कि सरपंच जिला बाई ने हितग्राहियों की लाखों की प्रोत्साहन राशि गबन कर ली है। जांच टीम द्वारा एक पंचनामा में सरपंच जिला बाई पर कार्रवाई की बात कहने पर ग्रामीणों ने वहां से आने दिया।
अब हमारे मध्य प्रदेश के सरकार द्वारा लाडली बहना योजना चालू की गई है। जिसमे हर मंथ की आर्थिक सहायता भी उपलब्ध की जा रही है। जिसके साथ ही मध्य प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान द्वारा लाडली बहनाओं के लिए मात्र 450 रुपए में घरेलू सिलेंडर देने के आदेश भी जारी कर दिए गए थे। लेकिन विधानसभा चुनाव होने के बाद मध्य प्रदेश के नए cm मुख्यमंत्री मोहन यादव जी बन चुके है। अब ये सभी लाडली बहनो को 450 रुपए में घरेलू सिलेंडर देंगे।
जैसा कि आप सभी को जानते ही होंगे की लाडली बहन योजना के अंतर्गत हर मंथ 1250 की किस्त डाली जा रही है। उसके साथ ही मध्य प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान द्वारा सिर्फ 450 रुपए में घरेलू सिलेंडर देने के लिए ऐलान किया गया था।लेकिन विधानसभा चुनाव होने से पहले 450 रुपए में घरेलू सिलेंडर देने के लिए फॉर्म भरवाए गए थे। जिन महिलाओं ने फार्म जमा किया उन सभी महिलाओं के खाते में सब्सिडी भी उपलब्ध की जा रही है।
लाडली बहनों को मिलेगा ₹450 में घरेलू सिलेंडर
आप भी जानते ही होंगे मध्य प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान द्वारा लाडली बहनाओं को 450 रुपए में घरेलू सिलेंडर के लिए फार्म भरवा गए थे। लेकिन विधानसभा चुनाव होने के बाद मध्य प्रदेश के नए मुख्यमंत्री मोहन यादव मुख्यमंत्री पद को संभाल रहे हैं। अब लाडली बहना योजनाओं के और हर मंथ सहायता भी दी जा रही है। आप को बता दे की अब आठवीं किस्त का पैसा मिलेगा या नहीं तो यहां पर हम आपको बता दें 10 जनवरी को लाडली बहन योजना की आठवीं किस्त आसानी से दी जाएगी। जिसके सिवाय 450 रुपए में घरेलू सिलेंडर भी सभी महिलाओं को दिया जाएगा।
अब मध्य प्रदेश की ऐसी बहने जिन बहनो के पास एलपीजी गैस कनेक्शन नहीं उन सभी बहनो को पीएम उज्जवला योजना के और से गैस चूल्हा फ्री में दिया जायेगा। जिसके लिए सभी बहने आवेदन फार्म नजदीक गैस एजेंसी में जाकर आवेदन करके पीएम उज्जवला योजना के और फ्री गैस चूल्हा एवं सिलेंडर दिया जाएगा। जिसके सिवाय 450 में घरेलू सिलेंडर भी दिया जायेगा। आप को बता दे की अब सभी बहने आवेदन जरूर करें। जिसके सिवाय आप एलपीजी गैस कनेक्शन की ईकेवाईसी भी करे।जिससे आप सभी बहनो को एलपीजी गैस सिलेंडर सिर्फ 450 रुपए में उपलब्ध कर सके।
10 जनवरी को मिलेगी आठवीं किस्त
अगर आप भी मध्य प्रदेश की जो लाडली बहन योजना का लाभ उठा रही उन सभी बहनो के लिए बड़ी खुशखबरी सामने निकल कर आ रही है। अब लाडली बहन योजना के और से सभी महिलाओं के खाते में लाडली बहन योजना की आठवीं किस्त डाली जाएगी। आप को बता दे की 10 जनवरी याने कल पैसा सिर्फ इन बहनो को दिया जाएगा। जो बहने इस योजना के पात्र होगी। जिसके सिवाय मध्य प्रदेश के वर्तमान मुख्यमंत्री मोहन यादव जी ने 27000 महिलाओं के नाम हटा दिये है। सभी महिलाएं पात्र सूची में अपना नाम आसानी से चेक कर सकती हैं।
Cabinet: मंत्रिमंडल विस्तार से पहले सीएम मोहन यादव ने राज्यपाल से मुलाकात की थी। राजभवन में आयोजित मंत्रियों के शपथ ग्रहण समारोह में केन्द्रीय मंत्री ज्योतिरादित्य सिंधिया भी शामिल थे। मंत्री बनने वाले विधायकों को फोन कर मंत्री बनने की जानकारी दी गई थी। कई सीनियर नेताओं को मंत्री नहीं बनाया गया है।
मध्यप्रदेश में कैबिनेट का विस्तार हो गया है। 18 कैबिनेट मंत्री, 6 राज्य मंत्री (स्वतंत्र प्रभार ) और चार राज्य मंत्रियों ने शपथ ली है। मंत्रिमंडल में पुराने और नए चेहरों को शामिल किया गया है। राज्यपाल ने सभी विधायकों को पद एवं गोपनीयता की शपथ दिलाई। सोमवार सुबह सीएम ने राज्यपाल से मुलाकात कर मंत्री बनने वाले विधायकों की लिस्ट सौंपी थी। कार्यक्रम में बीजेपी के कई सीनियर नेता मौजूद थे। पार्टी हाई कमान ने शपथ ग्रहण में सभी मौजूदा विधायकों को उपस्थिति रहने को कहा था।
कौन-कौन से विधायक बने मंत्री
क्रमांक मंत्री का नाम कौन से मंत्री
1 कैलाश विजयवर्गीय कैबिनेट मंत्री
2 प्रहलाद सिंह पटेल कैबिनेट मंत्री
3 राकेश सिंह कैबिनेट मंत्री
4 करण सिंह वर्मा कैबिनेट मंत्री
5 उदय प्रताप सिंह कैबिनेट मंत्री
6 कुंवर विजय शाह कैबिनेट मंत्री
7 तुलसीराम सिलावट कैबिनेट मंत्री
8 एंदल सिंह कंसाना कैबिनेट मंत्री
9 निर्मला भूरिया कैबिनेट मंत्री
10 गोविंद सिंह राजपूत कैबिनेट मंत्री
11 विश्वास सारंग कैबिनेट मंत्री
12 नारायण सिंह कुशवाह कैबिनेट मंत्री
13 नागर सिंह चौहान कैबिनेट मंत्री
14 चैतन्य कश्यप कैबिनेट मंत्री
15 इंदर सिंह परमार कैबिनेट मंत्री
16 राकेश शुक्ला कैबिनेट मंत्री
17 प्रद्युम्न सिंह तोमर कैबिनेट मंत्री
18 संपतिया उईके कैबिनेट मंत्री
राज्य मंत्री (स्वतंत्र प्रभार ) के रुप में इन विधायकों ने ली शपथ
क्रमांक मंत्री का नाम कौन से मंत्री
1 कृष्णा गौर राज्यमंत्री स्वतंत्र प्रभार
2 धर्मेंद लोधी स्वतंत्र स्वतंत्र प्रभार
3 दिलीप जायसवाल स्वतंत्र स्वतंत्र प्रभार
4 गौतम टेटवाल स्वतंत्र स्वतंत्र प्रभार
5 लेखन पटेल स्वतंत्र स्वतंत्र प्रभार
6 नारायण पवार स्वतंत्र स्वतंत्र प्रभार
राज्यमंत्री
राज्य मंत्री के रुप में राधा सिंह, प्रतिमा बागरी, दिलीप अहिरवार और नरेन्द्र शिवाजी पटेल को मंत्री पद की शपथ दिलाई गई। 28 मंत्रियों को शपथ दिलाई गई। ऐसे में एक साथ कई मंत्रियों को शपथ दिलाई गई है। मंत्री बनने वाले सभी विधायकों को सीएम और राज्यपाल ने बधाई और शुभकामनाएं दीं।
सभी गुटों को साधने की कोशिश
मंत्रिमंडल विस्तार में सभी गुटों को साधने की कोशिश की गई है। दिल्ली से फाइनल हुए नामों में सिंधिया खेमे के तीन विधायकों को मंत्री बनाया गया है। सिंधिया खेमे के उन्हीं विधायकों को मंत्री बनाया जाएगा जो शिवराज सिंह चौहान की कैबिनेट में मंत्री थे।
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आपको जानकर हैरानी होगी कि प्लान में रोज का खर्च 2.80 रुपये के करीब है। ये रिचार्ज प्लान एयरटेल या जियो का नहीं बल्कि सरकारी टेलिकॉम कंपनी बीएसएनएल का है। बीएसएनएल के पास पूरे 70 दिनों की वैलिडिटी वाला एक स्पेशल रिचार्ज प्लान है। आइए आपको डिटेल में बताते हैं बीएसएनएल के इस खास प्लान के बारे में।
BSNL197 रुपये प्रीपेड प्लान
बीएसएनएल के 197 रुपये के रिचार्ज प्लान में ग्राहकों को अनलिमिटेड वॉयस (लोकल और एसटीडी), डेली 2GB डेटा, डेली 100 एसएमएस और 15 दिनों के लिए Zing म्यूजिक कंटेंट प्रदान करता है। डेली डेटा लिमिट खत्म होने के बाद, यूजर 40 kbps स्पीड के साथ अनलिमिटेड डेटा यूज कर सकता है लेकिन ये बेनिफिट पहले 15 दिनों के लिए हैं।
यहां ध्यान देने वाली बात यह है कि 15 दिनों के लिए मिलने वाले फ्रीबीज बेनिफिट्स समाप्त होने के बाद, ग्राहक वॉयस, डेटा और एसएमएस के लिए अलग से रिचार्ज कर सकते हैं। यह प्लान बीएसएनएल के अधिकांश टेलीकॉम सर्किलों में उपलब्ध है। हालांकि, प्लान आपके क्षेत्र में उपलब्ध है या नहीं, इसकी जानकारी आप बीएसएनएल ऐप या वेबसाइट पर जाकर चेक कर सकते हैं। अगर एयरटेल और जियो की बात करें तो इनके पास ऐसा कोई प्लान नहीं है जिसमे 200 रुपये से कम में इतने दिन की वैलिडिटी मिले।
अगर आप सभी के पास भी एयरटेल का सिम है एयरटेल का सिम इस्तेमाल कर रहे हैं तो आप सभी के लिए यह बेहतरीन रिचार्ज प्लान आ गया है आप सभी लोग भी चाहते हैं कि कम पैसों में आप सभी को ज्यादा दिनों तक चलने वाला रिचार्ज प्लान का सुविधा मिले तो आप सभी के लिए यह आर्टिकल बहुत ही महत्वपूर्ण होने वाला है आज के इस आर्टिकल में हम आप सभी को बताने जा रहे हैं कि कौन से एयरटेल के हिसाब से सस्ता रिचार्ज प्लान है और कितने रुपए में यह रिचार्ज प्लान मिलने वाला है और कितने दिनों तक यह रिचार्ज प्लान का सुविधा मिल रहा है और साथ ही हम लोग जानने वाले हैं कि इस रिचार्ज प्लान में आप सभी को क्या-क्या मिलेगा और कैसे इसका लाभ लेना है।।आप सभी को पता होगा कि पिछले कई सालों से सभी टेलीकॉम कंपनियों ने अपने-अपने रिचार्ज प्लान को मंगा कर दिया है देखा जाए तो जिओ की बात किया जाए तो जिओ ने अपने रिचार्ज प्लान को 28 दिन वाले रिचार्ज प्लान को ₹239 रुपए में दे रहा है इस रिचार्ज प्लान में आप सभी को मात्र 1.5 जीबी इंटरनेट का सुविधा दिया जाता है पर एयरटेल का यह रिचार्ज प्लान मात्र ₹199 में दिया जा रहा है जो कि पूरे 365 दिनों की वैलिडिटी के साथ इंटरनेट की बात किया जाए तो 2GB प्रतिदिन इंटरनेट और 100 एसएमएस की भी सुविधा दिया जा रहा है इस वैलिडिटी में आप सभी को अनलिमिटेड कॉलिंग की सुविधा भी मिल जा रहा है।।
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मानधाता = वार्ड संख्या 13 के सभासद कुलदी यादव ने जिलाधिकारी को दिए शिकायत पत्र मे कहा है की वार्ड संख्या 13 मे नाली, और रास्ते की समस्या से जनता परेशान है, जल जमाव होने से आने जाने वालो के लिए तकलीफदेह है,
बारिश के मौसम मे नाली न होने के कारण वार्ड मे जल जमाव और लोगो के घरो मे पानी भरने का डर है, सभासद कुलदीप यादव के मुताबिक नगर पंचायत चुनाव के कई माह बीत जाने के बाद भी वार्ड मे विकास कार्य नही हो रहे है, जनता बुनियादी समस्या को लेकर परेशान है, सभासद कुलदीप यादव ने जिलाधिकारी को पत्र देकर मांग की है कि वार्ड मे केन्द्र और राज्य वित्त से नाली, आरसीसी रास्ते व अन्य विकास कार्य करने के लिए नगर पंचायत अध्यक्ष और अधिशाषी अधिकारी को निर्देशित करे ताकि वार्ड मे विकास कार्य से लोग लाभान्वित हो सके और उन्हे समस्या से निजात मिल सके
विधानसभा चुनाव बाद कयास लगाए जा रहे थे कि पुलिस विभाग में थोक के भाव से तबादले किए जाएंगे। आचार संहिता खत्म होते ही सिंगरौली पुलिस अधीक्षक यूसुफ कुरैशी ने प्रशासनिक दृष्टिकोण से 5 उपनिक्षकों के कार्यभार में फेरबदल कर उन्हें पूर्व का प्रभार पुनः सौंप दिया है।
जानकारी अनुसार जहां लंघाडोल थाना प्रभारी रहे उपनिरीक्षक विनय शुक्ला को पुनः गौरबी चौकी की कमान सौंपी गई है, वहीं एक बार फिर अभिषेक सिंह परिहार लंघाडोल थाना प्रभारी बनाए गए हैं। इसके अलावा खुटार चौकी प्रभारी रही उपनिरीक्षक शीतल यादव को विन्ध्यनगर थाने में स्थानांतरित किया गया है
एवं बरका चौकी प्रभारी रहे अभिषेक पांडे को खुटार चौकी प्रभारी की कमान दी गई है। इसके अलावा विन्ध्यनगर थाने में पदस्थ उपनिरीक्षक बालेन्द्र त्यागी को बरका चौकी भेजा गया है। बहुत संभव है कि आज ही सभी उपनिरीक्षक अपना पदभार ग्रहण कर लेंगे।
दिन चढ़ने के साथ-साथ जैसे-जैसे चुनाव के परिणाम आने लगे, स्क्रीन के सामने बैठे युवा कार्यकर्ता उत्साह से भरते चले गए.भारतीय जनता पार्टी की हर उम्मीदवार की जीत के साथ उत्साहित कार्यकर्ता नारे लगाते हुए, तालियां बजाने लग जाते थे.भाजपा के एक नेता बताते हैं कि जब राजनांदगांव से पूर्व मुख्यमंत्री रमन सिंह के 45,084 हज़ार वोटों से जीत की ख़बर स्क्रिन पर चमकी तो मौके पर एक जोड़ी हाथ भी ताली बजाने के लिए नहीं उठे
क्या लगातार 15 सालों तक छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री रहे रमन सिंह का जादू ख़त्म हो चुका है?
कम से कम ताज़ा चुनाव में भाजपा की जीत के बाद उनकी जगह, आदिवासी नेता विष्णुदेव साय की मुख्यमंत्री पद पर ताज़पोशी के बाद तो ऐसा ही लगता है.
विधानसभा की 90 में से 54 सीटों पर भाजपा की जीत के बाद माना जा रहा था कि रमन सिंह फिर से मुख्यमंत्री बनाए जाएंगे. हालांकि भाजपा के प्रभारी ओम माथुर कई बार कह चुके थे कि इस बार मुख्यमंत्री के लिए चौंकाने वाला नाम सामने आएगा.
लेकिन चुनाव जीतने के बाद रमन सिंह के हावभाव और आत्मविश्वास को देख कर राजनीतिक गलियारे में मान लिया गया था कि रमन सिंह को फिर से मुख्यमंत्री बनाया जा सकता है.
अब जबकि मुख्यमंत्री पद के लिए विष्णुदेव साय के नाम की घोषणा हो चुकी है, तब सवाल उठ रहे हैं कि आख़िर रमन सिंह मुख्यमंत्री पद से कैसे चूक गए?
रविवार को विधायक दल की बैठक में विष्णुदेव साय को विधायक दल का नेता चुने जाने का प्रस्ताव रमन सिंह को ही रखना पड़ा.
रमन सिंह को भाजपा ने विधानसभा अध्यक्ष की ज़िम्मेवारी सौंपी है.
रमन सिंह ने कहा, ”सबकी भूमिका संगठन में तय रहती है और संगठन सबको अलग-अलग दायित्व देता है. मुझे जो भी दायित्व दिया जाएगा, उसे मैं निभाउंगा.”
रमन सिंह पहली बार कब बने विधायक
आयुर्वेदिक डॉक्टर से पार्षद, विधायक, सांसद, मंत्री और फिर मुख्यमंत्री बनने वाले रमन सिंह के पुराने सहयोगियों को 40 साल पुरानी घटनाएं जस की तस याद हैं.
वे बताते हैं कि कैसे भाजपा युवा मोर्चा में काम करते हुए, 1983 में कवर्धा शहर के शीतला वार्ड से रमन सिंह ने पार्षद का चुनाव जीता था. वे अपनी छोटी-सी क्लिनिक में बैठ कर मरीज़ों को आयुर्वेदिक दवाएं दिया करते थे और मरीज़ों के इलाज के लिए घूम-घूम कर दूसरे इलाक़ों में भी जाते थे.
एक लोकप्रिय चेहरा मान कर भारतीय जनता पार्टी ने अविभाजित मध्य प्रदेश के दौर में 1990 में उन्हें पहली बार विधानसभा की टिकट दिया. कांग्रेस के जगदीश सिंह चंद्रवंशी को 16,033 मतों के अंतर से हरा कर रमन सिंह पहली बार विधानसभा पहुंचे.
छत्तीसगढ़ अलग राज्य बनने की तैयारी चल ही रही थी. उससे पहले 1999 में लोकसभा के चुनाव हुए और रमन सिंह राजनांदगांव लोकसभा से चुनाव जीत कर संसद पहुंचे. अटल बिहारी बाजपेयी की सरकार में रमन सिंह को वाणिज्य और उद्योग राज्य मंत्री की ज़िम्मेवारी सौंपी गई.
2000 में छत्तीसगढ़ अलग राज्य बना और राज्य में अजीत जोगी के नेतृत्व में कांग्रेस की सरकार बनी. अजीत जोगी का जलवा ऐसा था कि भाजपा के एक दर्जन से अधिक विधायक कांग्रेस में शामिल हो चुके थे. भाजपा के नेता डरे-सहमे रहते थे.
ऐसे में 2003 में छत्तीसगढ़ में जब पहली बार विधानसभा चुनाव होने थे, तब भारतीय जनता पार्टी की कमान संभालने के लिए नेता की तलाश शुरू हुई.
जशपुर इलाक़े के नेता दिलीप सिंह जूदेव और रायपुर के सांसद रमेश बैस को यह दायित्व सौंपने की कोशिश हुई, लेकिन दोनों इसके लिए तैयार नहीं हुए. अंततः रमन सिंह को केंद्रीय मंत्रीमंडल से इस्तीफ़ा देकर छत्तीसगढ़ लौटना पड़ा.
रमन सिंह के नेतृत्व में लड़े गए चुनाव में सत्ताधारी दल कांग्रेस 62 सीटों से 37 सीटों पर आ गई थी और भाजपा ने 50 सीट हासिल कर, सरकार बनाने में सफलता पाई. दिसंबर 2003 में रमन सिंह मुख्यमंत्री बने और अगले 15 सालों तक, 17 दिसंबर 2018 तक इस पद पर बने रहे.
छत्तीसगढ़ में मुख्यमंत्री अजीत जोगी को तो एक पूरा कार्यकाल भी नहीं मिला था. लेकिन अजीत जोगी ने विकास की जो नींव रखी, उसे रमन सिंह ने और विस्तारित किया. बिजली, सड़क, पानी, शिक्षा, स्वास्थ्य, सिंचाई के क्षेत्र में राज्य ने एक लंबी छलांग लगाई.
सार्वजनिक वितरण प्रणाली यानी पीडीएस में ग़रीबों को राशन देने की उनकी योजना की तारीफ़ तो दुनिया भर में हुई. देश में इसे एक मॉडल की तरह देखा गया.
हालांकि माओवाद का विस्तार, सलवा जुड़ूम, बस्तर में आदिवासियों की इच्छा के विरुद्ध उद्योग, खदानों का आवंटन, ग़रीबी के आंकड़ों में कोई कमी नहीं, भ्रष्टाचार, निरंकुश नौकरशाही और ख़ास तौर पर अंतिम कार्यकाल में ऐसे ही कई मोर्चे पर उनकी आलोचना भी हुई.
लेकिन दिसंबर 2018 में जब कांग्रेस की ऐतिहासिक जीत हुई और भारतीय जनता पार्टी को विपक्ष में बैठना पड़ा तो मान लिया गया था कि अगले 10-15 सालों तक भाजपा की वापसी मुश्किल होगी.
रमन सिंह के ख़राब स्वास्थ्य के बीच मान लिया गया कि अब उनके पास किसी राज्य का राज्यपाल बनने के अलावा कोई चारा नहीं है. हालांकि महीने भर के भीतर उन्हें भाजपा ने केंद्रीय उपाध्यक्ष ज़रूर बनाया लेकिन राज्य में होने वाली राजनीतिक गतिविधियों से वे दूर होते चले गए.
हमेशा सुरक्षाकर्मियों से घिरे रहने और ज़मीनी कार्यकर्ताओं से कम संपर्क के कारण उनकी पूछ-परख कम होती चली गई. राजनीतिक गलियारे में माना जाता है कि केंद्रीय संगठन ने भी जिन नेताओं को यहां भेजा, उन्होंने भी रमन सिंह और उनके समर्थकों को हाशिये पर रखा और नये चेहरों को ज़्यादा महत्व दिया.
हिंदी के वरिष्ठ पत्रकार दिवाकर मुक्तिबोध मानते हैं कि रमन सिंह ख़ुद भी इन चार सालों में लगभग निष्क्रिय बने रहे. हार के बाद उनके पास कोई विकल्प भी नहीं था. वो भी मान चुके थे कि अब उनकी राजनीतिक पारी ढलान पर है.
दिवाकर मुक्तिबोध कहते हैं, ”विधानसभा के लिए पहले दौर में जब टिकट बँटी तो माना गया कि सारा फ़ैसला केंद्रीय नेतृत्व का है, स्थानीय नेताओं की कहीं कोई भूमिका नहीं रही है. लेकिन दूसरे दौर में शेष बचे टिकट बाँटे गए तो नज़र आया कि सारे पुराने चेहरे फिर से मैदान में उतर दिए गए थे और यह सब रमन सिंह की सलाह पर ही किया गया.”
राजनीतिक गलियारे में कहा गया कि पुराने नेताओं को टिकट ही इसलिए दिए गए ताकि वो चुनाव में कोई असंतोष न पैदा कर सकें और फिर से मिले मौक़े को जी-जान से लड़ कर कम से कम अपनी उपयोगिता तो सिद्ध कर सकें.
चुनाव परिणाम जब आया और भाजपा सरकार बनाने की स्थिति में आई तो तुरंत बाद रमन सिंह ने अधिकारियों को चेतावनी जारी की कि वे पुरानी तारीख़ों में कोई चेक न काटें और ना ही बैक डेट में किसी फ़ाइल पर हस्ताक्षर करें.
इसी के साथ रमन सिंह अपने पुराने तेवर में लौट चुके थे.
दिवाकर मुक्तिबोध कहते हैं, ”रमन सिंह को पता था कि चौथी बार उम्मीद पालने का कोई अर्थ नहीं है. फिर भी उनकी किसी कोशिश पर भाजपा हाईकमान मुहर इसलिए नहीं लगा सकता था क्योंकि फिर ऐसी ही स्थिति मध्य प्रदेश और राजस्थान में भी सामने आती. वहां भी शिवराज सिंह चौहान और वसुंधरा राजे पर विचार करने की ज़रूरत आती. रमन सिंह की कोई कोशिश सफल होती, इसमें संशय है.”
हालांकि रविवार को विधायक दल की बैठक में सबसे अंत में रमन सिंह के पहुंचने से पहले अफ़वाह उड़ी कि वो अंतिम समय तक मुख्यमंत्री बनने की कोशिश में जुटे हुए हैं. इसके लिए वे पुराने सहयोगियों के साथ दूसरी जगह बैठक में हैं.
लेकिन असहज-सी भावमुद्रा के बाद भी, उनके ही द्वारा विष्णुदेव साय के नाम का प्रस्ताव रखे जाने ने इन अटकलों पर विराम लगा दिया.
भारतीय जनता पार्टी के एक वरिष्ठ नेता का कहना है कि आदिवासी मुख्यमंत्री बना कर ओडिशा और झारखंड के चुनाव में भी पार्टी को संदेश देना था.
इसके अलावा आदिवासी राष्ट्रपति के बाद भी आदिवासी और दलित विरोधी होने के आरोपों का भी जवाब देना था.नेता ने बीबीसी से कहा, ”देर सबेर जाति जनगणना का मुद्दा भी हमारे सामने होगा. ऐसे में एक ओबीसी और आदिवासी बहुल राज्य में सवर्ण चेहरा हमारे लिए कोई बेहतर विकल्प नहीं था. हमने बरसों की आदिवासी मुख्यमंत्री की मांग की जन अपेक्षा को पूरा किया है.”
इस 71 साल के रमन सिंह के हिस्से फ़िलहाल तो विधानसभा अध्यक्ष की कुर्सी संभालने की पेशकश है, लेकिन लोकसभा चुनाव और शायद उसके बाद भी, उनको लेकर अटकलों का दौर जारी रहेगा.
अटकलें हैं कि जिसमें कहा जा रहा है कि उन्हें पार्टी लोकसभा चुनाव लड़ाएगी, जीत गए तो केंद्र में मंत्री बनाएगी, कुछ न हुआ तो किसी राज्य के राज्यपाल तो बनाए ही जा सकते हैं!