बुंदेलखंड की धूल भरी गलियों में जहां लड़कियाँ खेलों से ज्यादा सपनों में सीमित कर दी जाती हैं, वहीं एक छोटी सी लड़की ने अपने हौंसलों से इतिहास रच दिया है। वो लड़की जो कभी क्रिकेट मैदान में बॉल उठाया करती थी आज क्रिकेट के मैदान में भारत के लिये विकेट चटका रही है।
बॉल उठाने से लेकर विश्व विजेता बनने तक का सफर
छतरपुर जिले के छोटे से गाँव घुवारा के एक सामान्य परिवार में जन्मी क्रांति गौड़ आर्थिक तंगी और सामाजिक बंदिशों के बीच पली-बढ़ी। इस बेटी का सपना था – अपने देश के लिए खेलना। बचपन में जब गाँव में टेनिस बॉल क्रिकेट टूर्नामेंट होते थे, तो क्रांति वहाँ “बॉल गर्ल” बनकर गेंद उठाया करती थी। किसी ने सोचा नहीं था कि यह लड़की एक दिन भारत की विश्व विजेता टीम का हिस्सा बनेगी।
मुश्किलों से टकराने वाली बेटी
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क्रांति के पिता एक पुलिसकर्मी थे। 2012 में नौकरी छूटने से परिवार पर आर्थिक संकट आ गया। घर की हालत ऐसी थी कि क्रांति को कक्षा 8 के बाद पढ़ाई छोड़नी पड़ी, पर उसने हार न मानते हुए बैट और बॉल को अपना भविष्य बना लिया। वर्ष 2017 में क्रान्ति ने साईं क्रिकेट एकेडमी, छतरपुर में कोच राजीव बिल्थारे की देखरेख में ट्रेनिंग शुरू की। कोच ने उसकी प्रतिभा पहचानी, फीस माफ की और खेल सामग्री से लेकर रहने की व्यवस्था तक खुद की।



















